Thursday, 24 August 2017

Hartalika Teej Vrat Katha II हरतालिका तीज व्रत कथा II sbvktrust.org

हरतालिका तीज व्रत पूजन सामग्री:-

बालू या मिट्टी ( गौरी-शंकर बनाने के लिये) पान का पत्ता , सुपारी , लौंग ,इलायची , गुड़ , धूप , दीप, अक्षत ,चंदन ,सिंदूर , फूल, बेल पत्र , आक/मदार के फूल , भांग , धतूरा , दूर्वा , नैवेद्य(घरेलु परम्परा के अनुसार)  ,लकड़ी का चौकी या पटरा- 1
कपड़ा – 3, ( 2 लाल और एक सफेद या हरा) , फल ,गंगा जल , शुद्ध जल ,लोटा , कपूर , घी ,मिट्टी का दीपक (अखण्ड दीप)
केले के चार पत्ते (मण्डप बनाने के लिये)

हरतालिका तीज व्रत कथा ..

एक बार भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से हरतालिका तीज व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।
भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा- एक बार जा तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा के किनारे, मुझे पति रुप में प्राप्त करने के लिये कठिन तपस्या की थी. उसी घोर तपस्या के समय नारद जी हिमालय के पास गये तथा कहा की विष्णु भगवान भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते है. इस कार्य के लिये मुझे भेजा है.
नारद की इस बनावटी बात को तुम्हारे पिता ने स्वीकार कर लिया, तत्पश्चात नारद जी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करने का निश्चय कर लिया है. आप इसकी स्वीकृ्ति दें. नारद जी के जाने के पश्चात पिता हिमालय ने तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है.
यह जानकर तुम्हें, अत्यंत दु: हुआ. और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी. एक सखी के साथ विलाप का कारण पूछने पर तुमने सारा वृ्तांत कह सुनाया कि मैं भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठिन तपस्या प्रारक्भ कर रही हूं, उधर हमारे पिता भगवान विष्णु के साथ संबन्ध तय करना चाहते है. मेरी कुछ सहायता करों, अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी.
सखी ने सांत्वना देते हुए कहा -मैं तुम्हें ऎसे वन में ले चलूंगी की तुम्हारे पिता को पता चलेगा. इस प्रकार तुम सखी सम्मति से घने जंगल में गई. इधर तुम्हारे पिता हिमालय ने घर में इधर-उधर खोजने पर जब तुम्हें पाया तो बहुत चिंतित हुए क्योकि नारद से विष्णु के साथ विवाह करने की बात वो मान गये थे.
वचन भंग की चिन्ता नें उन्हें मूर्छित कर दिया. तब यह तथ्य जानकर तुम्हारी खोज में लग गयें. इधर सखी सहित तुम सरिता किनारे की एक गुफा में मेरे नाम की तपस्या कर रही थी. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तिया तिथि का उपवास रहकर तुमने शिवलिंग पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया.
इससे मुझे तुरन्त तुम्हारे पूजर स्थल पर आना पडा. तुम्हारी मांग और इच्छा के अनुसार तुम्हें, अर्धांगिनी रुप में स्वीकार करना पडा. प्रात:बेला में जब तुम पूजन सामग्री नदी में छोड रही थी तो उसी समय हिमालय राज उस स्थान पर पहुंच गयें. वे तुम दोनों को देखकर पूछने लगे कि बेटी तुम यहां कैसे गई. तब तुमने विष्णु विवाह वाली कथा सुना दी.
यह सुनकर वे तुम्हें लेकर घर आयें और शास्त्र विधि से तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया. उस दिन जो भी स्त्री इस व्रत को परम श्रद्वा से करेगी, उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग मिलेगा.

एक बार भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।
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