Prayag Sewa Dham || प्रयाग सेवा धाम ||
Shradha Bhakti Viswa Kalyan Trust was established on 11th August, 2015 for the purpose of creating peace in the world and organize Kathas and other public awareness programmes in India and for undertaking other charitable and religious activities for the benefit of the public. Pushp Thakur Ji Maharaj
Saturday, 5 February 2022
Sunday, 3 September 2017
श्री दुर्गा चालीसा (Shri Durga Chalisa) PUSHP THAKUR JI MAHARAJ , SHRADHA BHAKTI VISWA KALYAN TRUST (PRAYAG) WWW.SBVKTRUST.ORG
WWW.SBVKTRUST.ORG PUSHP THAKUR JI MAHARAJ, SHRADHA BHAKTI VISWA KALYAN TRUST (PRAYAG)
हिन्दू धर्म में दुर्गाजी को आदिशक्ति कहा जाता है। माता दुर्गा की उपासना से मनुष्य के सभी पाप धूल जाते हैं और उन्हें कार्यों में सफलता मिलती है। माता दुर्गा जी की साधना के लिए श्री दुर्गा चालीसा को बेहद प्रभावशाली माना जाता है।
श्री दुर्गा चालीसा (Shri Durga Chalisa)
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
देवीदास शरण निज जानी। कहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
पुष्प ठाकुर जी महाराज
Saturday, 2 September 2017
SHRADHA BHAKTI VISHVAS SE MILTA HAI BHAGWAN , श्रद्धा भक्ति विश्वास से मिलता है भगवान।, कुंभ प्रयाग का अर्थ और महत्व तपस्या करना हो तो नर्मदा के तट पर और शरीर त्यागना हो तो गंगा तट पर। WWW.SBVKTRUST.ORG SHRADHA BHAKTI VISWA KALYAN TRUST,SHRADHEY PUJYA SHRI PUSHP THAKUR JI MAHARAJ (PRAYAG)
कुंभ प्रयाग का अर्थ और महत्व तपस्या करना हो तो नर्मदा के तट पर और शरीर त्यागना हो तो गंगा तट पर। WWW.SBVKTRUST.ORG SHRADHA BHAKTI VISWA KALYAN TRUST,SHRADHEY PUJYA SHRI PUSHP THAKUR JI MAHARAJ (PRAYAG)SHRADHA BHAKTI VISHVAS SE MILTA HAI BHAGWAN
'प्र' का अर्थ होता है बहुत बड़ा तथा 'याग' का अर्थ होता है यज्ञ। ‘प्रकृष्टो यज्ञो अभूद्यत्र तदेव प्रयागः'- इस प्रकार इसका नाम ‘प्रयाग’पड़ा। दूसरा वह स्थान जहां बहुत से यज्ञ हुए हों।
ब्रह्मा ने किया था यज्ञ : पृथ्वी को बचाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने यहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में वह स्वयं पुरोहित, भगवान विष्णु यजमान एवं भगवान शिव उस यज्ञ के देवता बने थे।
तब अंत में तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति पुंज के द्वारा पृथ्वी के पाप बोझ को हल्का करने के लिए एक 'वृक्ष' उत्पन्न किया। यह एक बरगद का वृक्ष था जिसे आज अक्षयवट के नाम से जाना जाता है। यह आज भी विद्यमान है।
अमर है अक्षयवट : औरंगजेब ने इस वृक्ष को नष्ट करने के बहुत प्रयास किए। इसे खुदवाया, जलवाया, इसकी जड़ों में तेजाब तक डलवाया। किन्तु वर प्राप्त यह अक्षयवट आज भी विराजमान है। आज भी औरंगजेब के द्वारा जलाने के चिन्ह देखे जा सकते हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने इसकी विचित्रता से प्रभावित होकर अपने संस्मरण में इसका उल्लेख किया है।
इस देवभूमि का प्राचीन नाम प्रयाग ही था, लेकिन जब मुस्लिम शासक अकबर यहां आया और उसने इस जगह के हिंदू महत्व को समझा, तो उसने इसका नाम 1583 में बदलकर इलाहाबाद रख दिया।
('रेवा तीरे तप: कुर्यात
मरणं जाह्नवी तटे। )
श्रद्धा भक्ति विश्व कल्याण ट्रस्ट, पूज्य श्री पुष्प ठाकुर जी महाराज
तीर्थराज प्रयाग की महिमा WWW.SBVKTRUST.ORG SHRADHA BHAKTI VISWA KALYAN TRUST , PUJYA SHRI PUSHP THAKUR JI MAHARAJ (PRAYAG)
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तीर्थराज प्रयाग की महिमा
उत्तरप्रदेश के प्राचीनतम तीर्थो में प्रयाग का नाम सबसे ऊपर आता है | यह आधुनिक समय में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है | हमारे प्राचीनतम ग्रंथो में इस धार्मिक शहर के महत्व और महिमा का वर्णन किया गया है | इसे साधू संतो ने तीर्थो के राजा ‘ तीर्थ राज ‘ की संज्ञा दी है |
प्रयाग की महिमा
1. इस पवित्र स्थान पर सबसे पहले भगवान ब्रह्मा जी ने पर्यावरण को शुद्ध करने के लिए हवन किया था | तभी से इसका नाम प्रयाग पड़ गया |
2. तीन महान और दैविक नदियों गंगा यमुना और सरस्वती के कारण यह नगरी अति पवित्र हो गयी है |
3. यह यज्ञों और अनुष्ठानों का नगर है। यहा महाकुम्भ मेला त्रिवेणी के संगम पर बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है |
4. यहा के पातालपुरी मंदिर में एक अमर और अक्षय वृक्ष है |
5. कुम्भ के अलावा मकर संक्रांति और गंगा दशहरा पर तीर्थ स्नान का अधिक महत्व है |
6. त्रिवेणी संगम के स्नान से मन और शरीर पवित्र होता है और पापो से मुक्ति प्राप्त होती है |
7. पुराण कहते है की प्रयाग में साढ़े तीन करोड़ तीर्थस्थल हैं |
8. यह नगरी वाल्मीकि के शिष्य ऋषि भारद्वाज की जन्मस्थली है |
त्रिवेणी संगम
यहा भारत की तीन महान धार्मिक नदियाँ गंगा , यमुना और सरस्वती का संगम होता है जिसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है | यहा के स्नान को सबसे पवित्र स्नान की मान्यता प्राप्त है | कहा जाता है की इस संगम के पास किसी की मृत्यु हो जाती है तो जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो मोक्ष को प्राप्त करता है |
प्रयाग में दर्शनीय स्थल और मंदिर
यहा बहुत सारे दर्शनीय मंदिर है जिनके दर्शन तीर्थ स्नान करके करने चाहिए |
1. नाग वासुकी मंदिर : यह मंदिर संगम के उत्तरी तट पर गंगा किनारे है | वासुकी को नागराज की संज्ञा दी गयी है | यह परम शिव भक्त थे और भगवान शंकर पर ही निवास किया करते थे | यहा नाग पंचमी के दिन बड़ी धूम धाम से उत्सव मनाया जाता है |
2. अलोपी देवी मंदिर : यह एक शक्तिपीठ है जहा माँ सती के रूप में एक लाल कपडे की पूजा अर्चना की जाती है | अलोपी देवी मंदिर में देवी की कोई प्रतिमा नही है |
3. तक्षकेश्वर नाथ मंदिर : यह मंदिर भी नाग देवता तक्षक का है | मान्यता है की कृष्ण ने जब तक्षक सर्प का पीछा किया तो उसने इसी जगह आश्रय लिया था |
4. अन्य मंदिर : इलाहबाद में दुसरे अन्य मंदिरो में भारद्वाज आश्रम , मनकामेश्वर मंदिर , ललिता मंदिर , पड़ला महादेव आदि मंदिर है |
Friday, 1 September 2017
Shradha Bhakti Visva Kalyan Trust || Shri. Shiva Chalisa | श्री शिव चालीसा |
श्री शिव चालीसा..Sri. Shiva Chalisa www.sbvktrust.org श्रद्धा भक्ति विश्व कल्याण ट्रस्ट पुष्प ठाकुर जी महाराज
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
Thursday, 31 August 2017
शिव कथा, Shiv Katha- जानिए भगवान शिव क्यों कहलाए त्रिपुरारी
www.sbvktrust.org By पुष्प ठाकुर जी महाराज, श्रद्धा भक्ति विश्व कल्याण ट्रस्ट
ब्रह्माजी ने दिया था ये अनोखा वरदान
शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा। तब उन तीनों ने ब्रह्माजी से कहा कि- आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाईए। हम इन नगरों में बैठकर सारी पृथ्वी पर आकाश मार्ग से घूमते रहें। एक हजार साल बाद हम एक जगह मिलें। उस समय जब हमारे तीनों पुर (नगर) मिलकर एक हो जाएं, तो जो देवता उन्हें एक ही बाण से नष्ट कर सके, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।
मयदानव ने किया था त्रिपुरों का निर्माण
ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का।
अपने पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।
ऐसे हुआ त्रिपुरों का नाश
चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने, इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उसकी नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया।
दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।
श्री सूक्त स्तोत्र || Sri Suktam stotra || Shradha Bhakti Viswa Kalyan Trust || Pushp Thakur Ji Maharaj ||
www.sbvktrust.org By पुष्प ठाकुर जी महाराज, श्रद्धा भक्ति विश्व कल्याण ट्रस्ट
॥वैभव प्रदाता श्री सूक्त॥
हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥
प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥८॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥
कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥१२॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१३॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१४॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥१५॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥
पद्मानने पद्म ऊरु पद्माक्षी पद्मासम्भवे ।त्वं मां भजस्व पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१७॥
अश्वदायि गोदायि धनदायि महाधने ।धनं मे जुषताम् देवी सर्वकामांश्च देहि मे ॥१८॥
पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवे रथम् ।प्रजानां भवसि माता युष्मन्तं करोतु माम् ॥१९॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः ।धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमश्नुते ॥२०॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा ।सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥२१॥
न क्रोधो न च मात्सर्य न लोभो नाशुभा मतिः ।भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत्सदा ॥२२॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे ।भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥३२॥
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।विष्णोः प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥३३॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि ।तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥३४॥
श्रीवर्चस्यमायुष्यमारोग्यमाविधात् पवमानं महियते ।धनं धान्यं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥३५॥
ऋणरोगादिदारिद्र्यपापक्षुदपमृत्यवः ।भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥३६॥
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